BA Semester-1 Hindi Kavya - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।

अथवा
'अज्ञेय नयी कविता के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। विश्लेषण कीजिए।
अथवा
अज्ञेय प्रयोगवादी कविता के कवि हैं अथवा नई कविता के सूत्रधार, विवेचना कीजिए।

उत्तर -

सन् 1943 में तारसप्तक का प्रकाशन हिन्दी साहित्य में एक महत्वपूर्ण घटना है। इस संकलन के प्रकाशन से प्रयोगवाद की चर्चा प्रारंभ हुई। तारसप्तक एक में अज्ञेय ने मुक्तिबोध, नेमिचन्द्र, भारतभूषण, माचवे, गिरजाकुमार, रामविलास शर्मा व अज्ञेय की चुनिन्दा रचनाएँ प्रकाशित करते हुए इनके एकत्रण के संदर्भ में तर्क दिया कि इन सभी में प्रयोग की ललक है। ये राही नहीं राहों के अन्वेषी हैं। इन सभी की कविताओं में विशेष रूप से शिल्प के स्तर पर प्रयोग की माँग उत्कट रूप से दिखाई दी, अतः इन कवियों को प्रयोगवादी कहा जाने लगा। इस प्रकार तारसप्तक प्रयोग की परंपरा का आरंभिक प्रयत्न माना जाता है तथा डॉ. अज्ञेय इस परंपरा के पुरस्कर्ता अथवा प्रवर्तक माने जा सकते हैं। 'दूसरे' और 'तीसरे' तारसप्तक द्वारा प्रयोगवाद को और प्रौढ़ता मिली उसकी विशिष्टताओं अथवा प्रमुख प्रवृत्तियों का स्वरूप स्पष्टतर होता गया। दूसरा सप्तक जहाँ साधारणीकरण संबंधी विवाद का स्पष्टीकरण देते हुए प्रयोगवाद को बाकायदा स्थापित करता है वहीं तीसरा सप्तक (1956) भाव और भाषा की सादगी के साथ प्रयोगवाद को पूर्णता प्रदान कर उसे 'नयी कविता' के रूप में ढालने को तत्पर दिखाई देता है। नयी कविता (सं. जगदीश गुप्त, 1954) प्रयोगवाद को दुर्गति से बचाने का एक सहानुभूतिक प्रयास माना गया जबकि उसके सभी कवि प्रायः प्रयोगवादी खेमे के ही कवि हैं। अस्तु, अज्ञेय के संदर्भ में यह संभ्रम कि उन्हें प्रयोगवादी कवि माना जाय या नयी कविता का अनावश्यक प्रतीत होता है। यह अवश्य है कि उनके काव्य में प्रयोगधर्मिता और नवीनता के प्रति तीव्र आग्रह दिखाई देता है। प्रयोगशीलता की यह स्पृहा और नवीनता की अकुलाहट शिल्प औरं वस्तु दोनों स्तरों पर मिलती है। 'हाइकू' जैसी विदेशी तथा लघुतम काव्य विधा से लेकर सुदीर्घ कविताओं तक व्यापक काव्य रूपीय कलक और विषय-वस्तु के स्तर पर दार्शनिक, पौराणिक ही नहीं समसामयिक यथार्थ बोध का अंगीकरण अज्ञेय की प्रयोगशीलता को रूपायित करने में पर्याप्त सक्षम है। अज्ञेय काव्य में परिव्याप्त प्रयोगवादी प्रवृत्तियों के सोदाहरण निदर्शन से पूर्व प्रयोगवाद के संबंध में अज्ञेय के विचारों का परिज्ञान आवश्यक हो जाता है। वस्तुतः प्रयोगवाद स्वयं को कविता की मूलभूत समस्या से जोड़ता है कि अनुभव को लोकसंप्रेष्य कैसे बनाया जाय? यह प्रश्न साधारणीकरण से जुड़ा है। जहाँ तक उन प्रयोगवादियों का मानना है कि साधारणीकरण की परंपरित प्रणालियाँ रूढ़ व प्रभावहीन हो गई हैं। काव्य को प्रभावोत्पादक और सर्वग्राह्य बनाने के लिए शब्दों में नये सिरे से नयी आभा, नयी अर्थवत्ता भरनी होगी, ऐसा मान कर ही अज्ञेय सहित इन सभी कवियों ने बहुस्तरीय प्रयोग प्रारंभ किए। इस प्रयोगधर्मिता के रूपायन क्रम में इनके काव्य की जो प्रवृत्तियाँ परिलक्षित हुई उन्हें बिन्दुवार यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।

वैयक्तिक अहंवाद की प्रतिष्ठा - तीनों सप्तकों में अन्य कवियों की अपेक्षा अज्ञेय के काव्य में यह सर्वाधिक मुखर है। कवि अपनी वैयक्तिकता को सुरक्षित रखना चाहता है। वह समष्टि का विरोधी नहीं है। समाज से ताल-मेल रखना चाहता है किन्तु अपनी निजता के उत्सर्ग के मूल्य पर नहीं। वह 'नदी का द्वीप' अथवा दीप माला का दीपक बनकर अस्तित्व बोध से तथा अपने निजत्व के आलोक से दीप्त रहना चाहता है। दीन व हीन स्थिति में भी उसका अहं बोध जाग्रत रहता है, यही प्रयोगवादी कवि का सबसे प्रधान अभिज्ञान सूत्र है। अज्ञेय की निम्न पंक्तियाँ देखिए  -
"नदी तुम बहती चलो
भूखंड जो दाय से हमको मिला है
मिलता रहे
माँजती संस्कार देती चलो।"

में समाज से व्यक्ति की इयन्ता और अहंता की स्वीकृति की अपेक्षा है तो -

मैं ही वह पदाक्रांत शिरियायाकुत्ता
मैं वह छप्पर तल का अहं लीन शिमुभिक्षुकं
मैं वह तारक युग्म
मेरे कारण अवगत - मेरे चेतन में अस्तित्व प्राप्त

आदि स्थलों में लघुतर और हीनतर निजता में भी समष्टि को व्याप्त करने की क्षमता के प्रदर्शन द्वारा अहं की प्रतिष्ठा का प्रयास किया गया है।

दुखवादी दर्शन - अज्ञेय काव्य में दुख को एक शक्ति के रूप में देखा गया है। वेदना का प्राधान्य छायावादी काव्य में भी रहा है किन्तु छायावादी वेदनानुभूति और प्रयोगवादी अथवा अज्ञेय का दुखवाद अपने स्रोत और स्वस्थ दोनों ही दृष्टियों से परस्पर मिला है। अज्ञेय तथा अन्य प्रयोगवादी कवियों का दुख उनकी व्यक्तिगत कुंठाओं, निराशाओं के अंध गह्वरों से उत्पन्न हुआ है जो उन्हें चूर-चूर कर सकता था -

मैं तेरा कवि ! ओ संध्या की तम घिरती धुतिकोर।
मेरे दुर्बल प्राण तन्तु को व्यथा रही झकझोर।

किन्तु उनका अहंवाद इस दुख को भी चुनौती मान कर आत्मबल अथवा संघर्ष के एक हथियार के रूप में परिवर्तित कर लेता है -

"दुख सबको माँजता है और
चाहे स्वयं सबको मुक्ति देना वह न जाने
किन्तु जिनको माँजता है
उन्हें यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखे।"

"दुख के संबंध में अज्ञेय का कथन है। दुख भोगना रचना करना नहीं है। यद्यपि रचना करने के लिए दुख भोगना आवश्यक है। दुख से जो उन्मेष होता है वही रचनाशील होता है। ..."

लघुमानव की प्रतिष्ठा - वर्तमान युग के यथार्थ दर्पण में मानव की सामर्थ्य और सीमा का अनुभव हो जाने से मानव का सर्वशक्तिमान्यता का बोध खंडित हो चुका है। वैज्ञानिक आविष्कारों और भौतिक प्रगति के निरन्तर विकास के बाद भी अनेक मोर्चों पर मनुष्य अपने को काफी कमजोर पाता है। महाकाव्यों के महानायकों के देवत्व या महामानवत्व का युग समाप्त हो गया। अब मनुष्य अपनी लघु सामर्थ्य पर ही विश्वास कर सकता है। प्रयोगवादी कवियों ने इसी लघु मानव उसकी अस्मिता और इयन्ता को अपने काव्य का विषय बनाया यथा -

हम छोटे नए लोग /खोजों के पीछे पागल हैं।
अनस्पर्श छूने को व्याकुल / अनगढ़ गढ़ने में रत हैं हम।
पुरुषोत्तम खरे

अज्ञेय लघुमानव की लघुता में भी दर्प दीप्त आभा देखते हुए कहते हैं -

छोटा सा भी मैं हूँ खर- रवि का प्रतिनिधि काली तमसा में।
रक्षक अथक खड़ा हूँ लेकर उसकी थाली मंजूषा में।

यौनवर्जनाओं का विरोध - वासना आदिम मानव आवेग है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ इसके आवेम को नियंत्रित व संतुलित करने की चेष्टा की गई है। कभी-कभी यह चेष्टा इतनी गुरुतर हो जाती है कि वासना या काम के सहज निःसरण का मार्ग पूर्णतया अवरुद्ध हो जाता है, तब मनुष्य कुंठाओं से ग्रस्त हो उठता है। यौन कुंठाओं के सघनतर होने पर यही भाव काव्य में यौनवर्जनाओं के स्पष्ट निषेध के रूप में अभिव्यक्त होते हैं।

युगीन यथार्थ का चित्रण - कवि अपने वर्तमान से काव्य सामग्री ग्रहण करता है। परिवेश में क्या अच्छा-बुरा घट रहा है? कहाँ सच्चाई और झूठ का संघर्ष है उसमें कौन किसके साथ है? किसके साथ अन्याय, किसका शोषण, किसकी पराजय हो रही है इसका वह केवल मूक दृष्टा नहीं रहता। वरन् इस द्वन्द्व में वह अपनी भूमिका, अपना पक्ष निश्चित कर लेता है और इस लड़ाई में शब्दों के आग्नेयास्त्रों से लैस होकर संघर्ष की मुद्रा में काव्य सृजन करता है।

आस्था - अनास्था का अद्भुत चित्रण प्रयोगवादी कवि होने के नाते अज्ञेय में परम्परा और परम्परित मूल्यों के प्रति गहरी वितृष्णा और अनास्था घर किए हुए है। उनका मध्यकालीन जीवनदर्शन से मोह भंग हो चुका है अतः उनके काव्य में अनास्था, नास्तिकता तथा नैराश्य के स्वर प्रमुखता से प्राप्त होते हैं किन्तु उसी के साथ उन्हें अपनी, लघुमानव की क्षुद्र सामर्थ्य पर अटूट विश्वास है। परिस्थितियों, परम्पराओं तथा घटनाओं की दुर्वहता के मध्य भी अज्ञेय व्यक्ति के 'स्व' के अभिमान को वरीयता देते हैं-

"क्यों करूँ आराधना उस देवता की,
जो कि मुझको सिद्धि तो क्या दे सकेगा
जो कि मैं स्वयं ही हूँ।"

यहाँ कवि की आस्था और अनास्था का द्वन्द्व मिश्रित स्वरूप स्पष्ट है। वे यह जानते हुए भी  -

साँस का पुतला हूँ मैं/जरा से बँधा हुआ हूँ औरह्न
मरण को दे दिया गया हूँ।

नवसर्जना में स्वयं को होम देने को तत्पर हैं जो उनकी बलवत्तर आस्था को ही रेखांकित करती है -

"नव सर्जना में जो
अपने को होम देते हैं आनन्दमग्न
उनकी तो दृष्टि और होती है।'

क्षणवाद - अज्ञेय ने समकालीन पाश्चात्य काव्यान्दोलनों का न केवल सूक्ष्म अध्ययन किया है, वरन् उनसे सृजनात्मक प्रेरणा भी प्राप्त की है। एकस्थल पर वे लिखते हैं, "क्षण के इस आग्रह का एक पक्ष योरोप के साहित्यिक अस्तित्ववाद में पाया जाता है।... मृत्यु के साक्षात्कार के क्षण में ही जीवन की चरम और तीव्र अनुभूति होती है।... क्षण के दर्शन का आग्रह है- जीवनानुभूति नाम की निजी और आत्यान्तिक चीज को दूसरी सब चीजों की अपेक्षा ऊपर रखना इस वक्तव्य में क्षणवाद के दार्शनिक पक्ष को स्पष्ट किया गया है। क्षणवाद का काव्यगत महत्व इतना है कि काव्यानुभूति अन्यान्य जीवनानुभूतियों के किसी विशिष्ट क्षण में प्राप्त होती है। "कन्हाई ने प्यार किया" तथा 'सर्जना के क्षण कविताओं के समन्वित अर्थान्वय से हम क्षणवाद के महत्व को समझ सकते हैं।

अभिनव प्रतीक योजना - अज्ञेय ने भाव-वस्तु के क्षेत्र में ही प्रयोग नहीं किए हैं वरन् शैली, शिल्प और भाषा के क्षेत्र में भी नव नव प्रयोग कर अभिव्यक्ति की रूढिबद्धता को तोड़ने का सफल प्रयास किया. है। अज्ञेय ने प्रतीकों की नूतन परम्परा के सृजन द्वारा काव्यर्थ को एक नवीन और वास्तविक दीप्ति प्रदान की है। उन्होंने परम्परागत प्रतीकों को यह कहकर अस्वीकृत कर दिया क्योंकि देवता इन प्रतीकों के कर गए हैं कूच यहाँ संक्षेप में अज्ञेय के प्रतीकों व उनकी नयी अर्थवत्ता का संकेतन किया जा रहा है -

(क) रेत (अनस्तित्व का प्रतीक)
किन्तु हम बहते नहीं। क्योंकि बहना रेत होना है,

(ख) दीप (व्यष्टि)
यह दीप अकेला स्नेह भरा है गर्व भरा मदमाता,

(ग) साँप (सभ्यमानव)
साँप ! तुम सभ्य तो नहीं हुए।

भाषा का एकान्त वैयक्तिक प्रयोग-  प्रयोगवादी कवि शब्द की प्रचलित अर्थवत्ता को सामान्यतः ग्रहण करना पसंद नहीं करते। स्वयं अज्ञेय का कहना है, "जो व्यक्ति का अनुभव है उसे समष्टि तक कैसे पहुँचाया जाय, यही पहली समस्या है जो प्रयोगशीलता को ललकारती है"। अज्ञेय का विचार है कि साधारणीकरण की प्राचीन प्रणालियाँ रूढ़ हो गई हैं अतः भाषा की क्रमशः संकुचित होती हुई केंचुल फाड़कर उसमें नया अधिक व्यापक तथा सारगर्भित अर्थ भरना पड़ेगा।

मुक्त अनुषेग - आधुनिक युग जटिल संवेदनाओं को यथाक्रम अथवा व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत कर सकना नए कवि लिए असंभव नहीं है, किन्तु ऐसा करना वह बेईमानी समझता है। प्रयोगशील कवि के मानव मनोविज्ञान का भी व्यावहारिक अध्येता है। मानव मन में अनुभूतियाँ जिस अनियंत्रित क्रम में उठती हैं उन्हें उसी असंबद्ध क्रम में प्रस्तुत करना मुक्त अनुषेग (Free Association) कहलाता है। अज्ञेय ने काव्य में इस टेक्नीक का प्रयोग वस्तुतः वर्तमान जीवन की जटिलता, उनके विसंगतिपूर्ण परिवेश को चित्रित करने के लिए किया है-

बिम्ब योजना - कविता चित्रों अथवा बिम्बों के माध्यम से प्रभाव डालती है। शब्द-चित्र ही कविता का धनात्मक पक्ष हैं। आधुनिक से आधुनिक कहे जाने वाले कवि काव्य के इस साधारण धर्म को नहीं त्याग सके हैं भले ही उन्होंने रस, रीति, अलंकार आदि परम्परागत भारतीय काव्यअंगकों का निषेध किया हो अज्ञेय के काव्य में चित्रात्मकता अपने चरम रूप में प्राप्त होती है। 'असाध्यवीणा' नामक लम्बी कविता अपनी बिम्ब योजना के लिए बहुचर्चित है। अज्ञेय के काव्य में अंकित शब्द चित्रों में एक नयापन, एक ताजगी और जीवन्तता का अहसास होता है, क्योंकि उन्होंने बासी या झूठे पड़ गए उपमानों से काम लेना बन्द कर दिया है और नए-नए उपमानों की खोज तथा प्रयोग द्वारा काव्य को नवता तथा प्रयोगशीलता प्रदान करने को अपनी सर्जना का उद्देश्य बना लिया है। निम्न चित्र में मछली के चित्र के माध्यम से मानवीय जिजीविषा व उसकी सजग अकुलाहट का चित्रण कितना सजीव बन पड़ा है -

"हवा का एक बुलबुला भर पीने को।
उछली हुई मछली
जिसकी मरोड़ी हुई देहवल्ली में
उसकी जिजीविषा की उत्कट आतुरता मुखर है।"

भदेसपन का प्रयोग - प्रयोगवादी अथवा नए कवियों पर यह आक्षेप लगाया जाता है कि उनकी अभिव्यक्तियों में अनगढ़पन अथवा भदेसपन पाया जाता है। यह आरोप सही होते हुए भी विचार की अपेक्षा रखता है। प्रयोगवादी कवि उदात्त और क्षुद्र रूप और कुरूप, शिव और अशिव दोनों को एक ही सहजता से साथ-साथ अपने काव्य में क्यों स्थान देता है? यह विचार का प्रश्न है। यथार्थवाद का आग्रह है कि स्थितियों को यथातथ्य रूप में प्रस्तुत करना न कि उनमें से सुन्दर, सुष्ठ, आकर्षक तथा मनोरम मात्र को चुनकर काव्य-विषय बनाना प्रयोगवादी कविता यहीं से कट कर पुरानी कविता से अलग हो जाती है। अज्ञेय 'शिशिर की राका' में दृष्टिपथ पर आए किसी भी चित्र को बिना काट-छांट और चयन के यथावत् रूप में प्रस्तुत करते हैं तो वे भदेस कहाँ से हो जाते हैं।

"निकटतर घंसती हुई छत, आड़ में निर्वेद
मूत्र सिंचित मृत्तिका के वृत्त में
तीन टांगों पर खड़ा, नतग्रीव
धैर्य धन गदहा।'

वर्तमान की अनगढ़, कुरूप व जुगुप्सित छवि अंकित कर अज्ञेय संभवतः मनुष्य के भीतर परिवर्तन की आकांक्षा उत्पन्न करना चाहते हैं तभी तो आधुनिक सभ्यता के दमघोंटू वातावरण को भदेसपन - के आरोप के खतरों के बाद भी प्रस्तुत करने में हिचकिचाते नहीं हैं।

"धनी कुछ हो जाने दो
रासायनिक धुन्ध के इस चीकट कम्बल की नयी घुटन को
मानव का समूह जीवन इस झिल्ली में ही पनप रहा है।'

यह आज की वास्तविकता है कि आज सम्पूर्ण मानवता इसी दुर्गधपूर्ण गवीज वातावरण में जी रही है, इसे अज्ञेय जैसे प्रयोगधर्मी कवि अनगढ़पन और भदेस के पुजारी होने का आक्षेप सहकर ही अपने काव्य में रूपायित कर रहे हैं तो इससे बड़ी साहसिकता और ईमानदारी क्या होगी?

वैचित्र्य प्रदर्शन की प्रवृत्ति - अज्ञेय ने संभवत: समीक्षकों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए. कभी-कभी विचित्र व वस्तु-भाषा दोनों ही दृष्टियों से असंबद्ध कविताएं लिखी हैं। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि अज्ञेय पर पाश्चात्य जगत में जल्दी-जल्दी जन्म लेने व समाप्त होने वाले काव्यान्दोलनों का पर्याप्त प्रभाव पड़ा है। रूपवाद, धनवाद आदि शैल्पिक पक्ष संबंधी आन्दोलनों के प्रभाव में ही अज्ञेय ने संभवतः इस प्रकार की रचनाएं की हैं। अज्ञेय की वैचित्र्यमूलक एक प्रसिद्ध कविता का अंश प्रस्तुत है -

"अगर कहीं मैं तोता होता
तो क्या होता? तो क्या होता? तोता होता
( आल्हाद से झूमकर )
तो तो तो तो ता ता ता ता ...'

भाषा सामर्थ्य - अज्ञेय ने काव्यभाषा को छायावादियों के निर्जीव स्वर्ग से निकाल कर मर्त्यलोक के मानव की भाषा का मुकर दिखलाया। उनकी काव्य भाषा प्रगतिवादियों के समान हल्की व मात्र बोलचाल की भाषा नहीं हैं उसमें काव्य-संस्कार विद्यमान है। काव्यभाषा की सबसे बड़ी विशेषता होती है कि उसके शब्द बिना अर्थ खोले ही बहुत कुछ कह जाएँ। अज्ञेय की काव्य भाषा में यह एक बहुत बड़ी ताकत है।

उनकी कविताओं के शब्द अपने गठन के अनुभव मात्र से अर्थ की अनुभूति कराने लगते हैं। 'नाता-रिश्ता' नामक कविता में अज्ञेय अपने रहस्यमय प्रेमास्पद को 'रेत-लदाझों का' से उपमित करते हुए उसकी हँसी को 'किरकिरी हँसी' बताए हुए सटीक अप्रस्तुत योजना करते हैं जो उनके निष्ठुर प्रियतम की निष्करुणा को अपनी समग्रता में स्थापित करता है।

अज्ञेय के समस्त काव्य सृजन का सूक्ष्म विश्लेषण करने के पश्चात् यह निष्कर्ष निकालना असंगत न होगा कि अज्ञेय एक प्रतिभा एवं आधुनिक संस्कार से युक्त कवि थे। उनकी काव्य भारतीय रूढ़ियों के बँधन में बँध कर रहने वाली नहीं थी, चाहे वह भले ही छायावादी रेशमी वायवीय कल्पनाओं का ही अदृश्य बंधन क्यों न हो उन्हें यथार्थ के मूत्र सिंचित मृत्तिका के वृत्त भी काव्य विषय लगते हैं। वे मानव की लघुता को उसकी सामर्थ्य और उसकी संवेदना को भविष्य की अनिवार्यता। समग्रतः वे प्रयोगधर्मा ही नहीं प्रयोगवाद के प्रवर्तक कवि माने जा सकते हैं।


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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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